भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा है कि भारत के विदेश नीति में पाकिस्तान और चीन के साथ सहयोग बढ़ाने की सोच नहीं है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सरकार की इच्छा और भारत की भावना यह है कि पाकिस्तान के साथ सामरिक तनाव को किनारे रखकर उनके साथ सहयोग बढ़ाया जाए। इसके साथ ही, जब तक भारत और चीन के बीच सीमा क्षेत्र में शांति नहीं होती, तब तक दोनों देशों के बीच सामान्य रिश्ते नहीं हो सकते।
एस जयशंकर ने दिए गए बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि भारत चाहता है कि चीन के साथ अच्छे रिश्ते हों, लेकिन ऐसा संभव नहीं होगा जब तक दोनों देशों के बीच सीमा क्षेत्र में स्थिति सामान्य नहीं होती। उन्होंने कहा कि जब तक यह हालत नहीं बदलती, तब तक दोनों देशों के संबंध आगे नहीं बढ़ सकते।
दोनों देशों के हित में नहीं होने का भी खुलासा किया है। विदेश मंत्री ने कहा कि रिश्तों को प्रभावित करने के लिए यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के बीच एक उचित समझौता होना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि चीन ने भारत को मजबूर करने की कोशिश की है, जबकि यह गतिरोध चीन के हित में भी नहीं है।
विदेश मंत्री ने यह भी बताया कि भारत के संबंध दूसरे प्रमुख देशों और संगठनों के साथ मजबूत हैं। चीन के अलावा भारत अपने नजदीकी पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्तों का आनंद उठा रहा है।
चीन के साथ संबंधों को सुधारने के इच्छुक होने के साथ-साथ, एस जयशंकर ने कहा है कि दोनों पक्षों को सैनिकों की वापसी के तरीके खोजने होंगे। यह गतिरोध चीन के हित में भी नहीं है। एस जयशंकर ने बताया कि रिश्तों को प्रभावित होने की संभावना है और जब तक सीमा क्षेत्र में स्थिति सामान्य नहीं होती है,
“विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा बढ़ते भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन रिश्तों पर टूट का बयान”
रत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अपने बयानों के माध्यम से भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन रिश्तों पर टूट की बात कही है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत की सरकार आतंकवाद को किनारे रखकर पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने की सोच नहीं रखती है और न देश की भावना यही है। इसके साथ ही, जब तक भारत-चीन सीमा क्षेत्र में शांति नहीं होती है, तब तक दोनों देशों के बीच सामान्य रिश्ते स्थापित नहीं हो सकते हैं।
इस विशेष मीडिया ब्रीफिंग के दौरान, विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के माध्यम से चीन और पाकिस्तान के साथ खराब रिश्तों को लेकर अपनी भावना स्पष्ट की है। उन्होंने बताया कि चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए, बॉर्डर पर शांति और सद्भाव होना चाहिए, और चीन को समझौते का पालन करना चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत चीन के साथ सामान्य रिश्ते बनाना चाहता है,
र्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं होती है। उन्होंने यह भी दावा किया कि दोनों देशों के संबंध आगे नहीं बढ़ सकते हैं जब तक ऐसा नहीं होता है। विदेश मंत्री ने चीन के पक्ष में जारी गतिरोध की उच्चता पर भी संकेत दिया है और कहा है कि यह गतिरोध चीन के हित में भी नहीं है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत और चीन के संबंधों को सुधारने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को सैनिकों की वापसी के तरीके खोजने होंगे। उन्होंने कहा कि सीमा पर जारी गतिरोध चीन के हित में भी नहीं है और रिश्तों को प्रभावित करता है। यदि हमें किसी तरह की उम्मीद है कि हम रिश्तों को सामान्य बना लेंगे, तो इसकी एक अच्छी तरह से स्थापित उम्मीद नहीं है जबकि सीमा की स्थिति सामान्य नहीं है।
जयशंकर विदेश मंत्री ने इसके साथ ही बताया है कि भारत के संबंध प्रमुख देशों और समूहों के साथ प्रगाढ़ हैं, छोड़कर चीन को।
विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा बढ़ते भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन रिश्तों पर टूट का बयान: अंतरराष्ट्रीय प्रमुख्यों की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा बढ़ते भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन रिश्तों पर टूट के बयान के पश्चात्, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अन्य प्रमुख्यों ने इसके बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह विवादास्पद बयान विभिन्न देशों और आपसी संबंधों पर विचार-विमर्श को बढ़ाने का कारण बना है।
विदेश मंत्री जयशंकर के बयान के पश्चात्, अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के अधिकारियों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। वे भारत की इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं और भारत को उनके योजनाओं में सहयोग प्रदान करने के लिए तैयार हैं।
इसके अलावा, कुछ अन्य देशों ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
संबंधों को लेकर विचार-विमर्श किया है और दोनों पक्षों को संघर्ष से दूर जाने और द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना करने की अपील की है। इसमें व्यापक रूप से बातचीत, डायलॉग और संघर्षनीति के उपयोग की जरूरत बताई गई है।
यह बयान विभिन्न संगठनों और महत्वपूर्ण अधिकारियों द्वारा भी समर्थित हुआ है। यूनाइटेड नेशंस, विश्व बैंक, गैजेटेड कमिशन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और अन्य संगठनों ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और शांति और सहयोग की मांग की है।
इसके अलावा, विदेश मंत्री जयशंकर के बयान ने विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया, विचारकों, विश्लेषकों और सामाजिक संगठनों को भी प्रभावित किया है। इससे विवाद और उठापटक दोनों पक्षों के बीच में और भी बढ़ गया है। इस मुद्दे पर विचार-विमर्श जारी है और भविष्य में भी इस पर विचार किया जाएगा।
“युद्ध और संघर्ष के बजाए सहयोग की जरूरत”
युद्ध और संघर्ष से बजाए, सहयोग और संवाद की जरूरत हमारे समय में अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बात को स्पष्ट किया है कि भारत की सरकार और देश की भावना आतंकवाद को किनारे रखकर पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने की सोच नहीं रखती हैं। इसके साथ ही, भारत चीन के साथ सामान्य और सुदृढ़ संबंधों की आशा रखता है, लेकिन ऐसे संबंधों का निर्माण संभव नहीं है जब तक कि बॉर्डर एरिया में शांति और सुरक्षा स्थिर नहीं होती।
इस बयान से स्पष्ट होता है कि द्विपक्षीय रिश्तों को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल भारत की नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी चीन और पाकिस्तान पर भी है। भारत चाहता है कि दोनों देश बातचीत और समझौते के माध्यम से मुद्दों को हल करें और एक शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करें।
युद्ध और संघर्ष के पथ पर चलने से केवल नुकसान होता है, जहां दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचता है और जीवनों की हानि होती है। इसके बजाय, सहयोग और संवाद के माध्यम से भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे देश अपने विवादों का समाधान ढूंढ सकते हैं। यह संघर्ष के पथ की जगह एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित इकाई का निर्माण कर सकता है।
युद्ध और संघर्ष के समय, आतंकवाद और संकट अपने मुखरों पर ऊभरते हैं, जो दोनों देशों और पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को प्रभावित करता है। सहयोग और संवाद के माध्यम से विपक्षी राष्ट्रों के बीच विश्वास और समझ स्थापित होती है, जो स्थायित्व और सुरक्षा का आधार बनती है।
भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच संघर्षों और विवादों के बावजूद, समझौते के माध्यम से उनके रिश्तों में सुधार लाने की चुनौती ग्रहण कर सकता है। इसके लिए, सभी पक्षों को सहयोगी बनना और दिलचस्पी रखना होगा