G20 सम्मेलन उत्तराखंड: भारतीय संस्कृति में रंगे विदेशी मेहमान, ऋषिकेश में पगड़ी पहनकर की गंगा आरती, तस्वीरें
उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, डेलीगेट्स ने अपने समय का उपयोग करके परमार्थ निकेतन आश्रम में सांध्यकालीन गंगा आरती में भाग लिया। इस आरती के दौरान, विदेशी मेहमान गंगा की अद्भुत सुंदरता को देखकर प्रभावित हुए और इस प्रतीति को अपने मोबाइल फोनों के कैमरे में कैद किया। कई लोगों ने इस आरती का लाइव प्रसारण भी किया। आरती के दौरान, ऋषिकुमारों ने वैदिक मंत्रों का पाठ किया और शंखनाद के साथ डेलीगेट्स का आदर्शवादन किया। सभी मेहमानों को मोगरा की माला और पगड़ी पहनाई गई। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रकार की पगड़ी तैयार की गई थी।
शिव स्तुति “करपूर गौरमं करुणावतारम्…” के साथ गंगा आरती की शुरुआत हुई। गंगा आरती के बाद, विदेशी मेहमानों ने ह
ाथों में रुद्राक्ष के पौधे लेकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। सभी ने ध्यान की मुद्रा में बैठकर मां गंगा से पर्यावरण की रक्षा की प्रार्थना की। अस्तो मां ज्योर्तिंगमय… के साथ आरती का विधिवत समापन हुआ।
इस अवसर पर, भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता का मेल दिखाते हुए एक ग्रुप फोटो भी क्लिक की गई। इस फोटो में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट, कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, साध्वी भगवती सरस्वती, और अन्य अधिकारी शामिल थे।
परमार्थ निकेतन के गंगा घाट पर रंगबिरंगी लाइटें सजी रहीं, जो आकर्षण का केंद्र बनीं। आरती स्थल पर लगी फोकस लाइटें ने गंगा की सुंदरता को और बढ़ा दिया। विभिन्न प्रकार की लाइटें एक के बाद एक आरती स्थल पर चमक बिखेर दिया।
“गंगा आरती: गीत, गंगा की महिमा और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प”
भारतीय संस्कृति में गंगा नदी को पवित्र माना जाता है। इस पवित्र नदी की महिमा, प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को दर्शाने के लिए भारत में गंगा आरती का आयोजन किया जाता है। इस आरती के द्वारा लोग गंगा माता के आदर्शों का पालन करते हैं और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाते हैं। गीत, गंगा की महिमा और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ गंगा आरती एक अद्वितीय अनुभव है।
गंगा आरती भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह आरती आमतौर पर भगवान या देवी के आदर्शों का प्रतीक होती है। गंगा आरती के दौरान गंगा के गीत गाए जाते हैं, जिनमें उसकी महिमा और महत्व का वर्णन होता है। यह गीतों का मंत्रमुग्ध उपयोग होता है जो भक्तों को आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं में ले जाता है। गीतों के साथ-साथ गंगा आरती के दौरान वैदिक
मंत्रों का पाठ किया जाता है, जिनमें गंगा की पवित्रता, शुद्धता और प्रकृति के संरक्षण की महत्वपूर्णता का वर्णन होता है। यह मंत्रों का जाप और ध्यान सभी को एकत्र करके पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संकल्प लेने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
गंगा आरती का आयोजन ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन आश्रम में किया गया, जहां गंगा की खूबसूरती और प्राकृतिक वातावरण ने अपनी आलौकिकता से देशी और विदेशी मेहमानों को मोह लिया। आरती के दौरान आश्रम के ऋषिकुमारों ने वैदिक मंत्रों का पाठ किया और शंखनाद के साथ डेलीगेट्स का स्वागत किया। गंगा आरती के दौरान मेहमानों को भारतीय परंपरागत पगड़ी और माला पहनाई गई, जिससे भारतीय संस्कृति की गहराई और एकता का प्रतीक दिखाया गया।
गंगा आरती के पश्चात विदेशी मेहमानों ने हाथों में रुद्राक्ष का पौधा लेकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। ध्यान की मुद्रा में सभी ने मां गंगा से पर्यावर
गंगा आरती: गीत, गंगा की महिमा और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प
भारतीय संस्कृति में गंगा नदी को पवित्र माना जाता है। इस नदी को मां गंगा के नाम से भी पुकारा जाता है, और इसे माना जाता है कि इसके जल में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मनुष्य शुद्धि प्राप्त करता है। गंगा आरती एक धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है जो गंगा माता की प्रशंसा करने के लिए होता है और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेने का अवसर प्रदान करता है।
गंगा आरती अक्सर परमार्थ निकेतन आश्रम में आयोजित की जाती है। यहां पर आरती के दौरान वैदिक मंत्रों का पाठ किया जाता है, जिनमें गंगा की महिमा, पवित्रता और पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्णता का वर्णन होता है। यह मंत्रों का जाप और ध्यान सभी को एकत्र करके पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संकल्प लेने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
गंगा आरती का आयोजन आंध्र प्रदेश के तिरुमला नामक स्थान पर भी किया
यहां पर भी भक्त गंगा माता की आराधना करते हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपना संकल्प लेते हैं। इस आरती में गंगा की महिमा, उसकी पवित्रता, उसके जल का महत्व और पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण तत्वों का विस्तारित वर्णन किया जाता है।
गंगा आरती का एक महत्वपूर्ण आंशिक अंग गायन होता है। कविताओं, भजनों और गीतों के माध्यम से गंगा की महिमा का वर्णन किया जाता है। ये गीत और भजन लोगों को आंतरिक शांति और ध्यान में ले जाते हैं और उन्हें पर्यावरण की रक्षा करने के लिए प्रेरित करते हैं। इन गीतों और भजनों के माध्यम से लोग गंगा के महत्व को समझते हैं और इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हैं।
गंगा आरती का एक और महत्वपूर्ण पहलू गंगा के जल का प्रयोग करने का होता है। आरती के दौरान जल की लहरें उठाई जाती हैं और उन्हें भक्तों पर वर्षाव के रूप में विसर्जित किया जाता है।
गंगा आरती: गीत, गंगा की महिमा और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प
गंगा आरती एक पवित्र और आध्यात्मिक आयोजन है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह धार्मिक अनुष्ठान, जिसमें गंगा माता की पूजा और स्तुति की जाती है, गंगा नदी की महिमा को व्यक्त करने का एक अद्वितीय तरीका है। इसके साथ ही, इस आरती में पर्यावरण संरक्षण के महत्व का भी संकेत दिया जाता है। इस लेख में हम गंगा आरती के विषय में एक अद्वितीय और SEO फ्रेंडली आलेख प्रस्तुत करेंगे।
गंगा आरती के दौरान पूजा, आराधना और गीतों के माध्यम से गंगा माता की महिमा और पवित्रता का वर्णन किया जाता है। इस अद्वितीय संगीतमय अनुष्ठान में भक्तों को गंगा जी के दिव्य गुणों का अनुभव होता है और वे उनकी पूजा करते हैं। गंगा आरती के दौरान गाए जाने वाले भजन और गीत भक्तों को एक आंतरिक शांति और आनंद का अनुभव कराते हैं।
मंत्रों की उच्चारण के माध्यम से गंगा माता की स्तुति की जाती है और उसकी महिमा का गुणगान किया जाता है। यह आरती का अंग है जो भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करता है। इसके अलावा, गंगा आरती के दौरान आपूर्ति और आरती की आग की दृष्टि से पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण संकेत भी दिया जाता है।
गंगा नदी भारतीय सभ्यता, धर्म और संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसे पवित्र माना जाता है और इसे देवी गंगा की स्वरूपिणी माना जाता है। गंगा आरती इस पवित्रता और महिमा का आदर्श दर्शाती है और लोगों को गंगा जी के महत्व को समझाने का एक माध्यम है। यह आरती एक धार्मिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है और लोग इसे श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं।
इसके साथ ही, गंगा आरती एक महत्वपूर्ण संकेत भी देती है पर्यावरण संरक्षण के लिए। गंगा नदी पृथ्वी पर सबसे पवित्र नदी मानी जाती है,
गंगा आरती के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संकेत
गंगा आरती एक अद्वितीय धार्मिक आयोजन है जो गंगा माता की पूजा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी जागृत करता है। गंगा नदी पृथ्वी की सबसे महत्वपूर्ण नदी मानी जाती है, और इसकी संरक्षा हम सभी की जिम्मेदारी है। इस अनुष्ठान के माध्यम से हमें पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूकता होती है और हम इसे अपने जीवन में अमल में लाने के लिए प्रेरित होते हैं।
गंगा आरती में उपयोग होने वाले गीत और मंत्र भक्तों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाते हैं। इसके द्वारा हमें उन महत्वपूर्ण संदेशों का संचार होता है जो प्रकृति के साथ हमारे संबंध को बनाए रखने की आवश्यकता बताते हैं। हमें प्राकृतिक संसाधनों की सम्पर्क में जीने के लिए सतत प्रयास करने की आवश्यकता होती है, साथ ही उनकी संरक्षा और सुरक्षा का भी ध्यान रखना हमारी जिम्मेदारी होती है।
प्राकृतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है। यहां गंगा आरती के माध्यम से हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि हमें प्रदूषण, जल प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए। यह हमारे वातावरण की सुरक्षा और प्रकृति के साथ हमारे मिलन की एक प्रतीक है।
गंगा आरती में प्रयुक्त गीत और मंत्र हमें जीवन के सामर्थ्य, पर्यावरण संरक्षण के महत्व, और प्राकृतिक संसाधनों की महानता को याद दिलाते हैं। इससे हमें प्रेरित होना चाहिए कि हम स्वच्छता, जल संरक्षण, और प्रकृति के साथ अनुकूल व्यवहार करें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी यही संदेश मिल सके।
गंगा आरती एक ऐसा सामाजिक और धार्मिक आयोजन है जो हमें एकजुट होने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत होने का अवसर प्रदान करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि गंगा माता की पूजा के साथ हमें उनके द्वारा प्रदत्त सम्पदाओं का